मोगली।जी हां, बड़वावनी से 10 किमी दूर पिछोड़ी गांव के सिरसानी बसाहट में रहने वाले 13 साल के कन्हैया को अब लोग इसी नाम से जानते हैं। रूडयार्ड किपलिंग के मशहूर उपन्यास जंगल बुक के पात्र मोगली की तरह ही कन्हैया को भी सिर्फ चड्डी पहनना ही पसंद है। इसके अलावा कुछ नहीं। उसकी आदत में सिर्फ एक बदलाव आया है वह पढ़ने के लिए पहली बार तौलिया लपेटकर स्कूल पहुंचा।
कन्हैया चर्चा में पहली बार तब आया था जब कक्षा-5वीं में गांव के शिक्षकों ने बिना यूनिफॉर्म उसके स्कूल आने पर आपत्ति ली थी। मां ललीताबाई अड़ गई। अफसरों से बच्चे की पढ़ाई नहीं रोकने को कहा। बात लोक शिक्षण संचालनालय भोपाल तक पहुंची। कन्हैया को विशेष अनुमति मिल गई। उसने 8वीं तक की पढ़ाई गांव के स्कूल में खुशी-खुशी पूरी कर ली। यहां से शुरू हुई दूसरी समस्या। गांव में इससे आगे स्कूल नहीं था और आगे की पढ़ाई के लिए शहर तक आना जरूरी था। गांव के स्कूल में चड्डी पहनकर भी काम चल गया लेकिन शहर की स्कूल में अनुमति मिलना मुश्किल था। एक बार फिर मोगली की मां ललीताबाई ने तरकीब निकाली। डीईओ से कन्हैया के लिए विशेष अनुमति हासिल कर ली। कन्हैया को भी कपड़ों के नाम पर बनियान शर्ट की जगह तौलिया लपेटने पर जैसे-तैसे राजी कर लिया। नए शिक्षा सत्र में कन्हैया ने स्कूल आना शुरू किया है। शासकीय स्कूल क्रमांक 2 में वो तौलिया लपेटे जब स्कूल पहुंचा तो लोग उसे ही देखने लगे। वह अब 9वीं में पढ़ रहा है।
पढ़ाईके प्रति लगाव और मां के जज्बे को देखते हुए नहीं रोकेंगे
^कन्हैयासामान्य बच्चा नहीं है। उसके पढ़ाई के प्रति लगाव और मां के जज्बे को देखते हुए हम उसे पढ़ने से नहीं रोकेंगे। शिक्षा सबका अधिकार है, लेकिन हमने उसकी मां से कहा है कि 10वीं से पहले उसे और कपड़े पहनने के लिए राजी करें क्योंकि को-एजुकेशन वाले स्कूल, कॉलेज में बाद में समस्या बड़ी हो जाएगी। बहरहाल अभी कोई समस्या नहीं है। -सीएस टैगोर, डीईओ, बड़वानी
प्राइमरी तक तो सिर्फ लंगोट में ही गया स्कूल
मांललीताबाई बताती हैं कि कंपकंपाती सर्दी तेज बारिश में भी कन्हैया चड्डी के सिवाय कुछ नहीं पहनता। बचपन से ही कपड़े पसंद नहीं हैं। लाख समझाने के बाद भी प्रायमरी स्कूल तक वो लंगोट में ही जाता था। डांट-फटकार पर रोता है
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